प्रेस विज्ञप्ति
मध्यप्रदेश इतिहास परिषद का 35वाँ अधिवेशन बुन्देलखण्ड इतिहास परिषद सागर द्वारा आज होटल वरदान में प्रारम्भ हुआ। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी व अधिवेशन की मुख्य अतिथि/वक्ता प्रो. सुनीता जैदी जामिया, मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली थीं। अध्यक्षता प्रो. के. रतनम जो भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य हैं ने की।



उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलित कर हुआ। स्वागत उद्बोधन देते हुये स्थानीय सचिव डाॅ. बी.के. श्रीवास्तव ने अतिथियों का परिचय देते हुये बुन्देलखण्ड विशेष सागर के ऐतिहासिक महत्व को बताया। प्रतिवेदन सचिव प्रो. नवीन गिडियन ने प्रस्तुत किया। उन्होंने विस्तार से म.प्र. इतिहास परिषद के कार्याें व सम्मेलनों का विस्तृत ब्यौरा दिया। उन्होंने बताया कि यह सागर में पाँचवीं बार आयोजित किया जा रहा है। डाॅ. गिडियन ने आश्वासन दिया कि वे यथा संभव प्रयास करेंगे कि परिषद का अधिवेशन प्रतिवर्ष मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में नियमित रूप से आयोजित होते रहें। प्रत्येक अधिवेशन की प्रोसीडिंग्स नियमित रूप से प्रकाशित होती रहें।
उद्घाटन सत्र की मुख्य वक्ता जामिया, मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की इतिहास की प्रो. सुनीता जैदी ने मध्यप्रदेश की कला, इतिहास एवं संस्कृति पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास में मध्यप्रदेश के इतिहास के महत्व की विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि तुगलक काल में भारत यात्रा पर आने वाले विदेशी यात्री इब्नबतूता ने सागर क्षेत्र की भौगोलिक एवं राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया। इस प्रकार प्रो. जैदी ने मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड एवं मालवा अंचल की कला, संस्कृति एवं इतिहास के महत्व को इंगित किया।
इसके बाद परिषद के मंच से मध्यप्रदेश के महान पुरातत्वविद् डाॅ. रहमान अली को लाइफ टाइम एचीवमेंट प्रदान किया गया। प्रो. रहमान अली की 10 पुस्तकें एवं 100 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. कुमार रतनम ने अपने उद्बोधन में मध्यप्रदेश के इतिहास के महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला। आपने शोधार्थियों को सलाह दी की क्षेत्रीय इतिहास पर कार्य करें मगर इसमें पूर्वाग्रहों से हर संभव मुक्त रहें।
प्रो. रतनम ने कहा कि इतिहास कोई वाद एवं विचारधारा से बंधा न रहकर स्वतंत्र रहना चाहिये। इतिहास पवित्र है, सत्ता कोई भी हो, उसे इतिहास की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिये। लोकगीतों, लोक नृत्यों एवं लोक संस्कृति में इतिहास पर शोध होना ही चाहिये। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य के रूप में उन्होंने आश्वासन दिया कि मध्यप्रदेश इतिहास परिषद में जो शोध पत्र प्रस्तुत किये जायेंगे, उनको पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराने का प्रयास डच्प्च् द्वारा किया जावेगा।


अंत में आभार प्रो. नागेश दुबे द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. भावना यादव ने करते हुये इतिहास की व्यापकता और वर्तमान विकास में उसके महत्व को बताया गया। परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है इसलिये प्रगति हमें अतीत से पृथक करती है परंतु इतिहास का अध्ययन हमें अतीत से जोड़ता है। सेमिनार में देश के विभिन्न हिस्सों से 120 विद्वानों ने अपना पंजीयन कराया।
प्रथम तकनीकि सत्र का संचालन डाॅ. भावना यादव ने किया। अध्यक्षता डाॅ. आर.के. अहिरवार ने की तथा रिपर्टियर डाॅ. संजय बारोलिया थे। सत्र में डाॅ. मधुबाला, डाॅ. स्नेहल, डाॅ. मीना श्रीवास्तव तथा शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. अहिरवार ने कहा कि प्रस्तुत शोध पत्र इतिहास के विभिन्न पक्षों को सदन में रखने में सफल हुये हैं।
द्वितीय तकनीकि सत्र की अध्यक्षता प्रो. आर.एन. श्रीवास्तव, रिपर्टियर डाॅ. पंकज सिंह तथा संचालन डाॅ. संजय बारोलिया ने किया। इस सत्र में डाॅ. कुमकुम ंमाथुर, डाॅ. शान्ति देव सिसोधिया, डाॅ. रामकुमार अहिरवार, कुमारी पल्लवी, डाॅ. वंदना गुप्ता ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
(डाॅ. नवीन गिडियन)
सचिव
म.प्र. इतिहास परिषद